उसकी क़ातिलाना नज़र के – यशु जान

उसकी क़ातिलाना नज़र के

उसकी क़ातिलाना नज़र के शिकार बन गए हैं,
इंतजार करते करते ख़ुद इंतजार बन गए हैं

उन्होंने मांग की थी चाँद तोड़कर ज़मीं पे लाने की,
आज सितारों की नज़र में हम ग़ुनाहग़ार बन गए हैं

दिन भर गलियों में ताकते हैं उनका रास्ता हम ,
खड़े – खड़े ही यारो अब एक दीवार बन गए हैं

गुज़रते लोग हमें देखकर है ऐसे क्यों छोर मचाते हैं ,
जैसे दुनियां के लिए हम कोई इश्तिहाऱ बन गए हैं

मेरी छोटी सी ज़िन्दगी को वीराने में बदल कर ,
वो किसी और की ज़िन्दगी की बहार बन गए हैं

अच्छा हुआ जो ख़ुद – ब – ख़ुद छोड़कर चली गई,
साला हम भी किसी और के अब यार बन गए हैं

मेरी बर्बादी के दिन पर सजाते हैं वो यूँ महफ़िलें ,
“यशु जान” बड़ी ख़ुशी है उनके लिए त्यौहार बन गए हैं


जेलों में बंद बेक़सूर

जेलों में बंद बहुत बेक़सूर बैठे हैं ,
कुछ लोग सच्चाई से बहुत दूर बैठे हैं

उनसे कैसे कहूँ सबूतों की हक़ीक़त मैं ,
लेकर दिल में जो कुर्सी का ग़ुरूर बैठे हैं

मिटा दूंगा ऐसी अदालतों , जजों ,वक़ीलों को ,
बेईमानी की दावत को जो करके क़बूल बैठे हैं

गीता पे हाथ रखकर सब सच ही कहते हैं ,
कई निर्दोषों को फांसी भी हुई ये भूल बैठे हैं

जीने – मरने का जो वादा करते थे आगे बढ़कर ,
आज मेरी बर्बादी का तमाशा देखने ज़रूर बैठे हैं

जिनको आड़ मिल गई इज़्ज़तों से खेलने की ,
“यशु” आज वही दरिंदे खोलकर स्कूल बैठे हैं


जवानी में कुछ नादानियाँ

जवानी में कुछ नादानियाँ सब करते हैं ,
और ख़यालों में मनमानियां सब करते हैं

जिस दिन दिल टूटता है किसी का यारो ,
इकट्ठी प्यार की निशानियां सब करते हैं

मिल जाए अगर कहीं पे कोई रोती हुई,
उसके साथ तब शैतानियां सब करते हैं

मुझे कोई पछतावा नहीं मैंने भी की हैं ,
इस उम्र में बेईमानियां सब करते हैं

फ़ौलाद का जिगर चाहिए यूँ ही नहीं,
माशूक़ा के नाम जवानियाँ सब करते हैं


मेरी ये ग़ज़ल पूरी नहीं है

ग़ौर फ़रमाईये मेरी ये ग़ज़ल पूरी नहीं है ,
सुनने वालों पूरी नहीं मग़र अधूरी नहीं है

सुन रहे हो इतने ग़ौर से माजरा क्या है ,
इसमें राँझा है हीर है पर चूरी नहीं है

नशे में डूबना हो तो एक दर्द काफ़ी है ,
जाम होंठों से लगाना भी ज़रूरी नहीं है

ढूंढ रही हो मेरी मोहब्बत को मेरे शरीर में ,
मेरा प्यार है हिरण की कस्तूरी नहीं है

अरे यार ये बात मैं बैठकर भी बोल सकता था ,
मेरा खड़े रहना आपका प्यार है मेरी मजबूरी नहीं है


यशु जान ( जन्म 09 – 02 – 1994 ) हिंदी, पंजाबी और उर्दू के युवा शायर और कवि हैं और उनकी बहुत सी कविताएँ पंजाबी और हिंदी की उम्दा ऑनलाइन पत्रिकाओं पर प्रकाशित हो चुकी हैं और इसके इलावा उनको गाने का बहुत शौंक है। नई – नई खोजों में कार्यरत रहना आपका जुनून है।
यशु जान,
जालंधर, पंजाब, संपर्क 98778746559



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!