कहानी 1. – पालनहार की जीत
मां और उसकी दो लड़कियां। दोनों बहनें वयस्क। बड़ी बहन ने जब अपने मनपसंद लड़के से शादी की ली तो मां को नागवार लगा। वह लड़का उन्हें ठीक नहीं लगा था। तभी से वे बड़ी बेटी से दुखी थीं।
छोटी जब समझने लगी तो सोचती ‘मैं अतीत की ओर देखती हूं तो हार जाती हूं, क्योंकि मां अपनी मंशा से कुछ करने न देंगे।’ इतना ही नहीं घर में जब भी छोटी अपनी दीदी का नाम लेती जो मां डांटती हुई कहती, ‘खबरदार जो उसका नाम इस घर में लिया तो। यों समझो कि उसके लिए मायके के दरवाजे अब हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं।’
बाद में समझ आया कि मां गलत नहीं थी। दीदी ने एक बच्ची को जन्म दिया था। ससुरालवालों के दबाव के चलते दीदी ने उस दुधमुंही को न अपनाने और त्यागने का मन बना लिया था। छोटी को जैसे ही दीदी की मंशा का पता लगा, उसने कहा, ‘दीदी अब मैं शादी नहीं करूंगी और उस दुधमुंही को पाल-पोस कर बड़ा करूंगी’ और वह ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के पावन उपक्रम में लग गई।
छोटी की भावना को इस बहादुरी में बदलते देख अब मां ने भी संतोष की सांस ली। आश्वस्त होते हुए बोलीं- ‘औरत, औरत की दुश्मन ही नहीं होती? मित्र ही होती हैा’ सुनकर छोटी मुस्कुरा दी। यह दुधमुंही की पालनहार की जीत जो थी।
कहानी 2 – कोई अंतर नहीं
वे सुबह अखबार पढ़ रहे थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी। असमंजस में कुछ सोचते हुए वे उठे और दरवाजे पर पहुंचे। दरवाजा खोला तो सामने एक मित्र थे। उनका स्वागत करते हुए उन्होंने कहा- ‘आइए, आइए। कैसे आना हुआ?’
मित्र बैठने से पहले ही बोल पड़े- ‘मुझे आप हजार रूपय दीजिए’
उन्होंने पूछा- ‘लेकिन आखिर तुम यह रूपया मांग क्यों रहे हो?’
मित्र ने कहा- ‘तुम तो मेरी आर्थिक स्थिति जानते हो। मेरी बेटी सयानी हो गई है। उसके हाथ समय पर ही पीले करना है। एक अच्छी जगह रिश्ता भी तय हुआ है। इसलिए अपने मित्रों से थोड़ी-थोड़ी राशि मांग रहा हूँ, ताकि अच्दे से उसका कन्यादान कर सकूं।’ उन्होंने तुरंत अपनी पत्नी से लेकर पांच हजार रूपए अपने मित्र को दे दिए। मित्र के जाने के बाद उनकी पत्नी बोली – ‘वे तो हजार रूपए ही मांग रहे थे, आपने पांच हजार रूपये क्यों दे दिए?’
उन्होंने मुस्कराकर कहा, ‘कल तुमने जाते समय अपनी बेटी को पांच हजार रूपये दिए थे। अपनी बेटी और पराई बेटी में क्या कोई अंतर होता है? फिर किसी कन्या के विवाह के लिए कुछ भी करना महान धर्म से कम नही होत।’ उनकी बात सुनकर पत्नी निरुत्तर हो गई और अंतरमन की अतल गहराइयों में डूब गईा।
डॉं. कल्याण प्रसाद वर्मा
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