लघुकथाऐं विडंबना और सच्‍चा मित्र!

विडंबना
संस्‍था के अधिकारी ने एक मीटिंग की। सभी सदस्‍य उपस्थित हुए। यह निर्णय लिया गया कि अपने परिसर को हरा भरा रखने का दायित्‍व हम सब का है। इसके लिए कुछ कार्य योजना तैयार हुई। पहली योजना थी वर्षा के मौसम में वृक्षारोपण की। दूसरी योजना थी कि महीने के प्रथम कार्य दिवस पर किसी वाहन का उपयोग नहीं किया जाएगा। तीसरी योजना थी कि जो सदस्‍य पूरे वर्ष भर पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ अच्‍छा काम करेगा उसे वृक्षमित्र पुरस्‍कार से नवाजा जाएगा। महीने के पहले कार्य दिवस का दिन था। उस दिन अधिकांश लोगों ने नियम का ध्‍यान रखा। तभी संस्‍था प्रथान की गाड़ी परिसर में प्रवेश की। आपस में कानाफूसी शुरू हो गई। दूसरे दिन संस्‍था प्रधान द्वारा एक नोटिस उन लोगों को जारी किया गया जिन्‍होंने वाहन का उपयोग कर नियम तोड़ा। कैसी विडंबना थी कि उस नोटिस में संस्‍था प्रधान का कहीं नाम नहीं था।

प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी


सच्‍चा मित्र
ऋषभ को घर में बैठे-बैठे चिड़चिड़ापन सा होने लगा था। मां ने उसे प्‍यार से कहा, ये वक्‍त इतना भी बुरा नहीं है। तुम चाहो तो इस खाली समय में नए दोस्‍त बना सकते हो। वह मां की बात का मतलब नहीं समक्षा और उठकर घर के गेट पर आकर खड़ा हो गया। उसे देखकर एक काला स्‍वान उसके नजदीक आया और पूंछ को हिलाने लगा। ऋषभ जब रोज ऑफिस जाता था तो वह अक्‍सर गली में किसी नाश्‍ते की दुकान पर झूठन चाटते हुए दिख जाता था। और शाम को भी वह ऋषभ का स्‍वागत करता था। अब वह पहले से कमजोर हो गया था। शायद बाजार बंद होने के कारण उसे खाने के लिए पर्याप्‍त कुछ नहीं मिल पा रहा था। ऋषभ उसके लिए अंदर से रोटी ले आया। अब तो रोजाना ही ऋषभ का समय उस स्‍वान के साथ गुजरने लगा। दोनों के बीच दोस्‍ती हो गई। इस लॉकडाउन की वजह से एक सच्‍चा और अच्‍छा दोस्‍त उसे मिल गया था।

धर्मेन्‍द्र सिंह तोमर



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