तीन लघु कथाएं
1- ईमानदारी – महेश राजा
2- प्रवचन – शुभम बैश्णव
3- पश्चाताप की अग्नि – शांतिलाल सोनी
ईमानदारी – महेश राजा
थ्री टीयर, स्लीपर कोच के पास बड़ी भीड़ थी। जैसे ही टीसी बोगी से बाहर निकला तो लोगों के हजूम ने उसे घेर लिया। लोग 200-500 के नोट लेकर टीसी की तरफ बढ़े। टीसी ने कहा, ‘नही-नही! रहने दीजिए। अंदर जाकर बैठिए। बर्थ होगी तो मैं जरूर आवंटित करूंगा।’ उन्होंने किसी से भी पैसे नहीं लिए और कुछ लोगों को ईमानदारी से रसीद काट कर सीट आवंटित कर दी।
मै रोजाना अप-डाउन करता था। मुझसे रहा नहीं गया तो पूछ लिया, ‘क्यों साहब, आज ईमानदारी से? क्या बात है? मैंने राज जानना चाहा।
वे सपाट स्वर में बोले, ‘आगे विजिलेंस की चेकिंग है’
प्रवचन – शुभम बैश्णव
गांव के मंदिर में पंडित जी प्रवचन सुना रहे थे। बीच-बीच में वे कहते, ‘यह जो सोच है, वही मानव कल्याण में सबसे बड़ी बाधा है।’
बार-बार यह बात सुन एक भक्त ने पूछा- ‘आपकी इस बात का क्या मतलब है?’ पंडित जी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘आप इस पवित्र स्थल पर बैठकर प्रवचन सुन रहे है, परंतु ईश्वर का एक भक्त मंदिर के बाहर बैठकर प्रवचन सुन रहा है, क्योंकि वह आपसे अलग जाति से संबंध रखता है। यह ऊंच-नीच की भावना निर्मित करती है। अस्पृश्यता पाप है। उसे भी इस मंदिर में पूजा करने का अधिकार है।’
पंडित जी की बात सुनकर गांव वाले बगले झांकने लगे।
पश्चाताप की अग्नि – शांतिलाल सोनी
बस धीरे-धीरे रवाना हो रही थी। तभी नीचे खड़े एक वृद्ध व्यक्ति के चेहरे के भावों ने संतोष को बेचैन कर दिया। सवारी लेने के लिए बस थोड़ी देर और खड़ी हो गई थी। संतोष उस व्यक्ति से उसकी परेशानी जानना चाहता था, लेकिन घर पहुंचने की जल्दी और गांव को जाने वाली अंतिम बस को पकड़ने की मजबूरी ने उसके पैर जकड़ लिए।
बस चल पड़ी, तभी संतोष ने देखा कि उस व्यक्ति की आंखों से आंसुओं का झरना फूट रहा था जो संतोष को अंदर तक हिला गया। इधर बस अपने गंतव्य की ओर पूरी रफ्तार से चल रही थी और खिड़की से अंदर बहती हवा संतोष में असंतोष भर रही थी। वह पूरे रास्ते और कई दिन इस घटना को याद कर खुद से प्रश्न करता रहा कि उसने उस व्यक्ति से बात क्यों नहीं की ? उसका दर्द क्यों नहीं सुना ? उस बेबस और लाचार व्यक्ति का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ जाता था, जिसे शायद उसके बच्चों ने घर से निकाल दिया हो।
कुछ समय बाद अखबार में छपी एक लावारिस व्यक्ति की मौत की खबर पढ़ संतोष पश्चाताप की अग्नि में जलता महसूस कर रहा था। सोच रहा था कि शायद इसकी मौत का जिम्मेदार कहीं न कहीं वह भी है।