मैं शिकार पर जा रहा हूँ!

एक नौजवान चीता पहली बार शिकार करने निकला…
अभी वो कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक लकड़बग्घा उसे रोकते हुए बोला
“अरे छोटू, कहाँ जा रहे हो तुम?”

“मैं तो आज पहली बार खुद से शिकार करने निकला हूँ “, चीता रोमांचित होते हुए बोला!

हा-हा-हा लकड़बग्घा हंसा और बोला अभी तो तुम्हारे खेलने-कूदने के दिन हैं,
तुम इतने छोटे हो, तुम्हे शिकार करने का कोई अनुभव भी नहीं है, तुम क्या शिकार करोगे!!

लकड़बग्घे की बात सुनकर चीता उदास हो गया…
दिन भर शिकार के लिए वो बेमन इधर-उधर घूमता रहा कुछ एक प्रयास भी किये पर सफलता नहीं मिली और उसे भूखे पेट ही घर लौटना पड़ा।

अगली सुबह वो एक बार फिर शिकार के लिए निकला…
कुछ दूर जाने पर उसे एक बूढ़े बन्दर ने देखा और पुछा, “कहाँ जा रहे हो बेटा ?”

चीता बोला:- बंदर मामा, मैं शिकार पर जा रहा हूँ।

बंदर बोला:- “बहुत अच्छे” तुम्हारी ताकत और गति के कारण तुम एक बेहद कुशल शिकारी बन सकते हो, जाओ तुम्हे जल्द ही सफलता मिलेगी।

यह सुन चीता उत्साह से भर गया और कुछ ही समय में उसने के छोटे हिरन का शिकार कर लिया।

मित्रों, हमारी ज़िन्दगी में “शब्द” बहुत मायने रखते हैं।
दोनों ही दिन चीता तो वही था, उसमे वही फूर्ति और वही ताकत थी पर जिस दिन उसे हतोत्साहित किया गया वो असफल हो गया और जिस दिन एनकरेज किया गया वो सफल हो गया।

इस छोटी सी कहानी से हम ये ज़रूरी बातें सीख सकते हैं!
पहली-
हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अपने “शब्दों” से किसी को उत्साहित करें, हतोत्साहित नहीं।
निसंदेह, इसका ये मतलब नहीं कि हम उसे उसकी कमियों से अवगत न करायें, या बस झूठ में ही उत्साहित करें।

दूसरी-
हम ऐसे लोगों से बचें जो हमेशा निगेटिव सोचते और बोलते हों, और उनका साथ करें जिनकी सोच पोसिटिव हो।



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